Monday, July 24, 2017

लेह लद्दाख का अनुभव -२

१३ जुलाई २०१७ -प्रोग्राम काफी समय पहले ही बना था लेह लद्दाख का किंतु आज जो ऊर्जा मान मै उछल खुद कर रही थी वो किसी और दिन नहीं की। दिन जैसे मनो की कट ही ना रहा हो। 
इस कार्यग्राम मे और मित्र लोग भी शामिल थे किन्तु किसी ना किसी काम की वजह से लोग मना करते गए और आखरी वक़्त पे हम तीन लोग ही बचें -१-शरीक खान २ -दानिश ३ -मैं  और हां एक नाम और मै लिख्ना भूल गया कहने को तो ड्राइवर की तरह वो गया था पर उसकी सरलता और अच्छे बर्ताव की वजह से उसने दिल मैं जगह बना ली मेरा हमनाम था वो -काशिफ अंसारी। 

रात १० बजे इन्नोवा कार मेरे घर के दरवाज़े पे आ गयी मेरे मित्र शरीक खान साहब का कॉल पहले ही आ चूका था की हम लोग पहुंचने वाले है सो तैयार रहना। माँ से पहले ही कह रखा था की मेरी मान पसंद सतु की रोटी बना देना सफर के लिए सो माँ तो  माँ होती है वक़्त से पहले ही उन्होंने सारी तैयारी कर लिया था। घर पे अकेला लड़का होना लोग अच्छा मानते हो पर मेरे दिल से पूछे जब कभी अपने माँ पापा को छोड़ के कही निकलना होता है तो उनकी नज़रे जैसे मानो कह रही हो की रुक जाओ जाना ज़रूरी है क्या ?शायद लिख़ते लिख़ते भावनाओं मै बहने लगा ख़ैर सफ़र पर लौटते है। 

रात १०:३०- सफर रात को ही करना था सो हम लोग अपनी मज़िल के तरफ निकल लिए घर वालो को अलविदा कह के। हमारे दोनों मित्र कार बख़ूबी चलना जानते है इस लिए मैं  इत्मिनान से था की किसी एक को भी नींद आएगी तू हमारे पास एक नहीं तीन ड्राइवर हैं। रात को हम लोगो ने लगतार कार चलाई और अगले दिन सुबह हम लोग सहरानपुर के करीब पहुंच गए। .. 

No comments:

Post a Comment

लेह लद्दाख का अनुभव -५

पहले तो मैं सबसे छमा चाऊगा की इतने दिनों बाद मैं आज फिर से ब्लॉगर पे वापस आ सका। कुछ अधिक ही वयस्ता हो गयी थी अपने काम को ले के। कोशिश यही ...