१५ जुलाई २०१७ -आज करीब सुबह २:३० बजे हम लोग मनाली एंटर किये प्रोग्राम मै रुकने का कोई सीन नहीं था। पर हम लोगो ने होम वर्क अच्छे से नहीं कर रखा था मतलब की रोहतांग जाने के लिए वेह्किल परमिट होना ज़रूरी था।
ख़ैर सुबह का वक़्त था सो बस स्टैंड के पास शरीक़ सहाब ने चाय का ठेला देख के कार वहीं रोक दिया इतफ़ाक़ से वहाँ पे पुलिस कांस्टेबल भी खड़ा था। जैसा की मैंने पहले भी बताया था की हमारे दानिश भाई और काशिफ अंसारी पीछे मस्त हो के नींद का आनंद ले रहे थे वो मनाली पहुंचने पर भी वैसा ही आनंद ले रहे थे।
चाय की चुस्की के साथ ही हम लोगो को पुलिस कांस्टेबल ने बतया की भैया जी बिना परमिट के कहा चल दिए १० बजे सुबह ऑफिस खुलेगा तू ही बात बनेगी। और इतना सुने के बाद हम दोनों की चाय की चुस्की मै दो तीन फेन और जुड़ गया की अब यही इंतज़ार करना पड़ेगा और हम दोनों ही सोच मै डूब गए।
आखिर मे हम लोगो ने एक राय बना के आज के दिन मनाली में रुकने का सोच लिया,अब सोच ने के बाद रूम भी चाइये था। यहाँ अभी भी हमारे दोनों भाई लोग कार मै मस्त नींद का आनंद ले रहे थे बिना किसी टेंशन के। शरीक ने कार पार्क कर दिया पार्किंग मै। अरे हां एक बात और जब आप मनाली मे एंटर करेंगे तो एक ३०० रुपया का ग्रीन परमिट बनता है जिसे आप वह फ्री पार्किंग का आनंद ले सकते है ७ दिन। वैसे ये एक अच्छी बात है की कार वालो को इसे सहूलियत मिल जाती है बिना टेंशन के कार पार्क करने के लिए और शहर भी जाम लगने से बच जाता है।
मनाली ने हम लोगो का फिर स्वगत थोड़ी देर की बारिश से किया जिसे हम लोगो को रूम खोजने मे दिकत हुई और हम दोनों लोगो को भी कार मै ही दुबकना पड़ा और कब नींद लग गयी इसका एहसास भी नहीं हुआ। शरीक की आवाज़ देने पे नींद टूटी भाई लोग उठ जाओ सुबह के ५ :३० हो गए है ,इस बार दानिश भाई साहब भी जगे तब हम लोगो ने उनको जानकरी दी की यही रुकना है सो एक रूम का इंतज़ाम करना पड़ेगा और फिर रूम की तलाश मे दो से तीन हो गए हम लोग और आखिर कर हमें रूम नसीब हुआ ६:३० बजे के करीब।
तब तक मनाली मे उजाला हो चूका था और सामने पहाड़ इस्तकबाल कर रहा हो बदलो के साथ मिल के ऐसा महसूस हो रहा था हम लोगो को,साथ मे नदी की कलकलहाट सगींत की तरह महसूस हो रही थी बहुत ही लुभावना मंज़र था वो शायद शब्दों मे बयां करना आसान नहीं उसे।
रूम मे आराम करने के बाद हम लोग परमिट का इंतज़ाम किये और दिन भर मनाली के हसीन वादियों का लुफत उठाये। वैसे तू मेरा नाता हिमाचल से पुराना है क्यों की चार साल मैंने अपने यही बिताये थे इंजीनियरिंग के दौरान पर शायद ३-४ साल बाद यहाँ आना अलग सा अहसास दे रहा था।
कल सुबह हम लोगो को जल्दी उठ जाना था इस लिए खाना वाना खा के हम सभी लोग सो गए आगे के सफर के लिए ()
ख़ैर सुबह का वक़्त था सो बस स्टैंड के पास शरीक़ सहाब ने चाय का ठेला देख के कार वहीं रोक दिया इतफ़ाक़ से वहाँ पे पुलिस कांस्टेबल भी खड़ा था। जैसा की मैंने पहले भी बताया था की हमारे दानिश भाई और काशिफ अंसारी पीछे मस्त हो के नींद का आनंद ले रहे थे वो मनाली पहुंचने पर भी वैसा ही आनंद ले रहे थे।
चाय की चुस्की के साथ ही हम लोगो को पुलिस कांस्टेबल ने बतया की भैया जी बिना परमिट के कहा चल दिए १० बजे सुबह ऑफिस खुलेगा तू ही बात बनेगी। और इतना सुने के बाद हम दोनों की चाय की चुस्की मै दो तीन फेन और जुड़ गया की अब यही इंतज़ार करना पड़ेगा और हम दोनों ही सोच मै डूब गए।
आखिर मे हम लोगो ने एक राय बना के आज के दिन मनाली में रुकने का सोच लिया,अब सोच ने के बाद रूम भी चाइये था। यहाँ अभी भी हमारे दोनों भाई लोग कार मै मस्त नींद का आनंद ले रहे थे बिना किसी टेंशन के। शरीक ने कार पार्क कर दिया पार्किंग मै। अरे हां एक बात और जब आप मनाली मे एंटर करेंगे तो एक ३०० रुपया का ग्रीन परमिट बनता है जिसे आप वह फ्री पार्किंग का आनंद ले सकते है ७ दिन। वैसे ये एक अच्छी बात है की कार वालो को इसे सहूलियत मिल जाती है बिना टेंशन के कार पार्क करने के लिए और शहर भी जाम लगने से बच जाता है।
मनाली ने हम लोगो का फिर स्वगत थोड़ी देर की बारिश से किया जिसे हम लोगो को रूम खोजने मे दिकत हुई और हम दोनों लोगो को भी कार मै ही दुबकना पड़ा और कब नींद लग गयी इसका एहसास भी नहीं हुआ। शरीक की आवाज़ देने पे नींद टूटी भाई लोग उठ जाओ सुबह के ५ :३० हो गए है ,इस बार दानिश भाई साहब भी जगे तब हम लोगो ने उनको जानकरी दी की यही रुकना है सो एक रूम का इंतज़ाम करना पड़ेगा और फिर रूम की तलाश मे दो से तीन हो गए हम लोग और आखिर कर हमें रूम नसीब हुआ ६:३० बजे के करीब।
तब तक मनाली मे उजाला हो चूका था और सामने पहाड़ इस्तकबाल कर रहा हो बदलो के साथ मिल के ऐसा महसूस हो रहा था हम लोगो को,साथ मे नदी की कलकलहाट सगींत की तरह महसूस हो रही थी बहुत ही लुभावना मंज़र था वो शायद शब्दों मे बयां करना आसान नहीं उसे।
रूम मे आराम करने के बाद हम लोग परमिट का इंतज़ाम किये और दिन भर मनाली के हसीन वादियों का लुफत उठाये। वैसे तू मेरा नाता हिमाचल से पुराना है क्यों की चार साल मैंने अपने यही बिताये थे इंजीनियरिंग के दौरान पर शायद ३-४ साल बाद यहाँ आना अलग सा अहसास दे रहा था।
कल सुबह हम लोगो को जल्दी उठ जाना था इस लिए खाना वाना खा के हम सभी लोग सो गए आगे के सफर के लिए ()