Saturday, December 2, 2017

लेह लद्दाख का अनुभव -५

पहले तो मैं सबसे छमा चाऊगा की इतने दिनों बाद मैं आज फिर से ब्लॉगर पे वापस आ सका। कुछ अधिक ही वयस्ता हो गयी थी अपने काम को ले के। कोशिश यही रहेगी की मैं कहनी को आगे बढ़ता रहू ,जो स्नेह और प्रेम आप लोगो का मिला उसका मैं तहे दिल से सभी लोगो का शुक्रगुज़ार हु। 
१६ जुलाई २०१७ -अगली सुबह बहुत जोश से शुरू हुई हमलोगों ने अपना अपना सामान कार मैं फिर से डाला और मनाली की हसीन वादियों को अलविदा कहते हुए आगे का सफर फिर से शुरू किया सुबह के करीब ५ बजे हमलोगो ने आउटर मनाली मैं क़दम रख दिया। उन वादियों की ठण्ड और साथ ही साथ नदी की कलकलहाट जो मन मैं उमंग भर रही थी उसका शब्दों मैं शायद ही मैं उल्लेख कर पाऊ। तस्वीर का इस वक़्त पे मै सहारा लेना ज़दा पसंद करुँगा।

ख़ैर जब बात खूबसूरती और वो भी हिमाचल की हो तो  अलग सा मूड बन जाता है। शायद ही मै तह उम्र हिमाचल को भूल पाउँगा मेरे बहुत से अच्छे अनुभव जुड़े हुए है उस जगह से ओह देखे कैसे मैं बहक जाता हु और मैन स्ट्रीम से हाट जाता हु। चलिए फिर से अपने अनुभव पे लौटता हु। सफर लम्बा था सो बिना रुके हुए हमलोग बढ़ते रहे  और रोहतांग के जाने वाले  चेक पोस्ट पे पहुंच गए वहां बारिश की वजह से जैम सा लगा हुआ था. २० से २५ मिनट बाद हमलोग चेक पोस्ट क्रॉस कर पाए और दिल की धड़कन जैसे खुद बा खुद तेज सी हो गयी। सुबह का वक़्त होने पे हमारे सभी भाईलोग एनर्जेटिक महसूस भी  कर रहे थे सो गाड़ी की रफ़्तार भी  अच्छी बानी हुई थी हाला की कोई एक्सप्रिएंस नहीं था जनाब लोगो के पास पहड़ो पे चलने का। शायद  कोसकर पोस्ट पड़ता है रस्ते मे हमलोग नाश्ता करने को वहा पे रुके और तब अहसास हुआ हमे ठंड का। १५ -२० मिनट वहां रुक कर हमलोग आगे बढ़ लिए। आज सिर्फ और सिर्फ दिमाग मै सफ़र को आगे बढ़ने का था क्यों की हमलोगो का एक दिन मनाली मे चला गया था। रोहतांग पास पहुंचने के बाद भी हमलोगो ने सफर जारी रख्ने का मन बनया और फिर गाड़ी चलती गयी। इतना मनमोहक दृश्य देख के मन बच्चा बन जाने का हो रहा था और हुआ भी  वही गाड़ी की खिड़की खोल के उस पे बैठ कर वादियों का लुफ़त लिया हमलोगो ने काफी जगहों पे रुक रुक के सेल्फी और पिक्चर्स भी क्लिक करते रहे। और इस बात का हसास नहीं हुआ की ठण्ड ज़ादा थी।  






Wednesday, July 26, 2017

लेह लद्दाख का अनुभव -४

१५ जुलाई २०१७ -आज करीब सुबह  २:३० बजे हम लोग मनाली एंटर किये प्रोग्राम मै रुकने का कोई सीन नहीं था। पर हम लोगो ने होम वर्क अच्छे से नहीं कर रखा था मतलब की रोहतांग जाने के लिए वेह्किल परमिट होना ज़रूरी था।
ख़ैर सुबह का वक़्त था सो बस स्टैंड के पास शरीक़ सहाब ने चाय का ठेला देख के कार वहीं रोक दिया इतफ़ाक़ से वहाँ पे पुलिस कांस्टेबल भी खड़ा था। जैसा की मैंने पहले भी बताया था की हमारे दानिश भाई और काशिफ अंसारी पीछे मस्त हो के नींद का आनंद ले रहे थे वो मनाली पहुंचने पर भी वैसा ही आनंद ले रहे थे।
चाय की चुस्की के साथ ही हम लोगो को पुलिस कांस्टेबल ने बतया की भैया जी बिना परमिट के कहा चल दिए १० बजे सुबह ऑफिस खुलेगा तू ही बात बनेगी। और  इतना सुने के बाद हम दोनों की चाय की चुस्की मै दो तीन फेन और जुड़ गया की अब यही इंतज़ार करना पड़ेगा और हम दोनों ही सोच मै डूब गए।
आखिर मे हम लोगो ने एक राय बना के आज के दिन मनाली में रुकने का सोच लिया,अब सोच ने के बाद रूम भी  चाइये था। यहाँ अभी भी हमारे दोनों भाई लोग कार मै मस्त नींद का आनंद ले रहे थे बिना किसी टेंशन के। शरीक ने कार पार्क कर दिया पार्किंग मै। अरे हां एक बात और जब आप मनाली मे  एंटर करेंगे तो एक ३०० रुपया का ग्रीन परमिट बनता है जिसे  आप वह फ्री पार्किंग का आनंद ले सकते है ७ दिन। वैसे ये एक अच्छी बात है की कार वालो को इसे सहूलियत मिल जाती है बिना टेंशन के कार पार्क करने के लिए और शहर भी जाम लगने से बच जाता है।
मनाली ने हम लोगो का फिर स्वगत थोड़ी देर की बारिश से किया जिसे हम लोगो को रूम खोजने मे  दिकत हुई और हम दोनों लोगो को भी कार मै ही दुबकना पड़ा और कब नींद लग गयी इसका एहसास भी नहीं हुआ। शरीक की आवाज़ देने पे नींद टूटी भाई लोग उठ जाओ सुबह के ५ :३० हो गए है ,इस बार दानिश  भाई साहब भी जगे तब हम लोगो ने उनको जानकरी दी की यही रुकना है सो एक रूम का इंतज़ाम करना पड़ेगा और फिर रूम की तलाश मे  दो से तीन हो गए हम लोग और आखिर कर हमें रूम नसीब हुआ ६:३० बजे के करीब।
तब तक मनाली मे उजाला हो चूका था और सामने पहाड़ इस्तकबाल कर रहा हो बदलो के साथ मिल के ऐसा महसूस हो रहा था हम लोगो को,साथ मे नदी की कलकलहाट सगींत की तरह महसूस हो रही थी बहुत ही लुभावना मंज़र था वो शायद शब्दों मे बयां करना आसान नहीं उसे।
रूम मे आराम करने के बाद हम लोग परमिट का इंतज़ाम किये और दिन भर मनाली के हसीन वादियों का लुफत उठाये। वैसे तू मेरा नाता हिमाचल से पुराना है क्यों की चार साल मैंने अपने यही बिताये थे इंजीनियरिंग के दौरान पर शायद ३-४ साल बाद यहाँ आना अलग सा अहसास दे रहा था।
कल सुबह हम लोगो को जल्दी उठ जाना था इस लिए खाना वाना खा के हम सभी लोग सो गए आगे के सफर के लिए () 





Tuesday, July 25, 2017

लेह लद्दाख का अनुभव -३

१४ जुलाई २०१७ -सुबह हम लोग सहरानपुर पहुँच चुके थे। सावन का महीना चल रहा था और कावड़िया बम बोल करते मदमस्त चल मे बढ़े जा रहे थे केसरिया रंग मै रंगे  कलश लिए, अच्छा लगता है हर धर्म की आस्था देख के। लोग कितनी पीड़ा उठा कर कितना कष्ट झेल कर फिर भी मुस्कुराते हुए अपने रास्तो पे आगे बढ़ते रहते है इसी को शायद विश्वास कहते है इसी को सच्ची निष्ठा या भगवान कहते है।
ख़ैर  सफ़र लम्बा था हम लोगो का। रस्ते डाइवर्ट किये गए थे सो हम लोगो को गांव के रस्ते होते हुए आगे बढ़ना पड़ा। आज दिन भर भी हम लोग कभी उत्तर प्रदेश तो कभी उत्तराखंड की दहलीज़ लगतें रहे।
जो खाना हम लोग घरो से ले के  चले थे खैर वो ही दिन मे काम आया। अरे हां एक बात मैं लिख्ना ही भूल रहा हु स्वत्छ भारत मिशन के कारण हम लोगो को कोई दिकत नहीं आयी दिन की की शुरुआत करने मे हर पेट्रोल पम्प पे आप को सुलभ शौच मिल ही जाना है। मैं इस बात से बहुत ही खुश हू की मेरा देश कही न कही बदल रहा है।
दिन मै करीब ३:०० बजे हम लोग चण्डीगढ़ के बॉर्डर पे पहुंचे ही थे की हमारे मित्र दानिश साहब को कोल्ड ड्रिंक पीने की सजा ट्रैफ़िक पुलिस ने दे दी चलान हाथों मै थमा के वैसे इसमें कोल्ड ड्रिंक की गलती नहीं थी पर उसी कारण वश भाई हमारे सीट बेल्ट लगना भूल गए थे। वहा से हम लोगो का रास्ता डाइवर्ट था रूपनगर होते हुए सो हम लोग बढ़ लिए आगे उसी रस्ते पर।
शाम करीब ७ :३० पे हम लोग ढाबे पे रुक के नाश्ता पानी किये और वहां से हमारे ड्राइवर कम पायलट शरीक साहब ने स्टेरिंग संभाल ली।
रात करीब ११ बजे हम लोग कुल्लू (हिमाचल प्रदेश )क्रॉस कर रहे थे। कुल्लू का टनल देख्ने लायक होता है रात के  वक़्त ठंडी हवा का बहना बिना ट्रैफिक के मान को सकुन सा मिलता है।
प्रोग्राम मै हम लोगो के कही रुकना नहीं था रोहतांग से पहले पर आप की सोच कहा तक चल सकती है भगवान के आगे।
रात ३ बजे करीब हम लोग मनाली पहुंच गए। दानिश साहब और काशिफ अंसारी पीछे मस्त हो के सोने का आनंद ले रहे थे।




Monday, July 24, 2017

लेह लद्दाख का अनुभव -1

आज बहुत दिनों बाद कुछ लिख्ने का मान हुआ ब्लॉगर पे। जिन्दगी कॉलेज के बाद बदल सी गयी है। करीब ५ साल बीत गए इंजीनियरिंग किये हुए। किस मुक़ाम पे कड़े है ख़ुद को ही पता नहीं। ..... 
वक़्त की रफ़्तार रुक नहीं रही और मैँ उसकी रफ़्तार पकड़ नहीं पा रहा ख़ैर जो मिला ऊपर वाले से उसके लिए मै शुक्रग़ुज़ार हू उसका। 
घुमाने  का शोक ख़ैर अभी भी  बाकी है और कोशिश रहेगी की रोज़ कुछ कुछ नया आप लोगो के सामने पेश करुँ साथ ही साथ अपने अनुभव शेयर करुँगा।  
अभी  हाल  फ़िलहाल  लेह लद्दाख हो  के लौटा  हु। अच्छा अनुभव रहा ,अच्छे विचरो वाले लोग मिले  ,१० दिन का सफ़र  रहा  उत्तर  प्रदेश  से  लेह  तक  का ;;;कुछ  अच्छा   कुछ   कट्टा  अनुभव  रहा  सफ़र  के दौरान //

लेह लद्दाख का अनुभव -२

१३ जुलाई २०१७ -प्रोग्राम काफी समय पहले ही बना था लेह लद्दाख का किंतु आज जो ऊर्जा मान मै उछल खुद कर रही थी वो किसी और दिन नहीं की। दिन जैसे मनो की कट ही ना रहा हो। 
इस कार्यग्राम मे और मित्र लोग भी शामिल थे किन्तु किसी ना किसी काम की वजह से लोग मना करते गए और आखरी वक़्त पे हम तीन लोग ही बचें -१-शरीक खान २ -दानिश ३ -मैं  और हां एक नाम और मै लिख्ना भूल गया कहने को तो ड्राइवर की तरह वो गया था पर उसकी सरलता और अच्छे बर्ताव की वजह से उसने दिल मैं जगह बना ली मेरा हमनाम था वो -काशिफ अंसारी। 

रात १० बजे इन्नोवा कार मेरे घर के दरवाज़े पे आ गयी मेरे मित्र शरीक खान साहब का कॉल पहले ही आ चूका था की हम लोग पहुंचने वाले है सो तैयार रहना। माँ से पहले ही कह रखा था की मेरी मान पसंद सतु की रोटी बना देना सफर के लिए सो माँ तो  माँ होती है वक़्त से पहले ही उन्होंने सारी तैयारी कर लिया था। घर पे अकेला लड़का होना लोग अच्छा मानते हो पर मेरे दिल से पूछे जब कभी अपने माँ पापा को छोड़ के कही निकलना होता है तो उनकी नज़रे जैसे मानो कह रही हो की रुक जाओ जाना ज़रूरी है क्या ?शायद लिख़ते लिख़ते भावनाओं मै बहने लगा ख़ैर सफ़र पर लौटते है। 

रात १०:३०- सफर रात को ही करना था सो हम लोग अपनी मज़िल के तरफ निकल लिए घर वालो को अलविदा कह के। हमारे दोनों मित्र कार बख़ूबी चलना जानते है इस लिए मैं  इत्मिनान से था की किसी एक को भी नींद आएगी तू हमारे पास एक नहीं तीन ड्राइवर हैं। रात को हम लोगो ने लगतार कार चलाई और अगले दिन सुबह हम लोग सहरानपुर के करीब पहुंच गए। .. 

लेह लद्दाख का अनुभव -५

पहले तो मैं सबसे छमा चाऊगा की इतने दिनों बाद मैं आज फिर से ब्लॉगर पे वापस आ सका। कुछ अधिक ही वयस्ता हो गयी थी अपने काम को ले के। कोशिश यही ...